top of page
Search

बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैन समुदाय के बूचड़खानों पर लंबे समय तक प्रतिबंध लगाने के अधिकार पर सवाल उठाया।

  • Writer:  Bureau ApnaSamachar
    Bureau ApnaSamachar
  • Aug 21
  • 2 min read

ree

मुंबई, 20 अगस्त जैन समुदाय ने बुधवार को बाम्बे उच्च न्यायालय से कहा कि मुगल बादशाह अकबर को पर्यूषण पर्व के दौरान बूचड़खानों को बंद करने के लिए राजी करना आसान था। लेकिन राज्य सरकार और बृहन्मुंबई महानगरपालिका को ऐसा करने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ ने बीएमसी आयुक्त के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। जिसमें पर्यूषण पर्व के दौरान केवल दो दिन के लिए बूचड़खाने बंद करने को कहा गया था

बीएमसी आयुक्त ने 14 अगस्त, 2025 के एक आदेश द्वारा पर्यूषण पर्व यानी 24 अगस्त और 27 अगस्त (गणेश चतुर्थी) के दौरान मुंबई शहर में 2 दिनों के लिए बूचड़खानों को बंद करने का फैसला किया। हालांकि, जैन समुदाय का पवित्र कार्यक्रम एक सप्ताह के लिए यानी 20 अगस्त से 27 अगस्त के बीच मनाया जाता है। सुनवाई के दौरान जैन समुदाय के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि बीएमसी प्रमुख इस तथ्य पर विचार करने में विफल रहे कि जैनों की आबादी अहमदाबाद की तुलना में मुंबई में अधिक है। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद ने पहले ही पर्यूषण पर्व के दौरान सभी दिनों के लिए शहर में बूचड़खानों को बंद करने का फैसला किया है।

इस बीच, समुदाय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रसाद धाकेफलकर ने भी प्रस्तुत किया कि बीएमसी आयुक्त ने अपने आदेश में राय दी है कि मुंबई में जैनियों की आबादी शहर की पूरी आबादी की तुलना में बहुत कम है। ढाकेफलकर ने कहा, "नागरिक निकाय ने मुंबई की कुल आबादी पर गलत विचार किया। उन्होंने केवल मांसाहारियों की तुलना में जैनियों की आबादी पर विचार किया होगा। उन्होंने जैनियों के खिलाफ शाकाहारियों को भी गिना। वास्तव में, महाराष्ट्र में भी श्रावण चल रहा है, इसलिए आधे मांसाहारी नानवेज नहीं खा रहे।

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा, ''लेकिन इसके लिए आपको उन्हें (बीएमसी) समझाना होगा। ढाकेफलकर ने इस बीच तर्क दिया, "समुदाय आसानी से सम्राट अकबर को मना सकता है। जिन्होंने तब गुजरात में बूचड़खानों को बंद करने का आदेश दिया था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी को समझाना वास्तव में मुश्किल है। चंद्रचूड़ और ढाकेफलकर की दलीलों पर प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि क्या पर्यूषण काल के दौरान वध गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का समुदाय का कोई वैधानिक अधिकार है।

अदालत ने कहा, 'अगर इसे हम पर छोड़ दिया जाता है और लोग हमारी बात सुनेंगे तो हम सभी से शाकाहारी होने के लिए कहेंगे। लेकिन आदेश कानून के चार कोनों के भीतर होना चाहिए। हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। लेकिन आपको बीएमसी को समझाने की जरूरत है। अदालत ने कहा कि वह अगले साल इस मुद्दे पर फैसला करेगी और राज्य तथा बीएमसी को नोटिस जारी करेगी। मामले को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया है।

By :Narsi Benwal

 
 
 

Comments


bottom of page