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उर्दु अदब के मशहूर शायर मुनव्वर राना का लंबी बीमारी के बाद इंतकाल हो गया है।

  • Writer:  Bureau ApnaSamachar
    Bureau ApnaSamachar
  • Jan 15, 2024
  • 1 min read

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जिस्म पर मट्टी मलेंगे पाक हो जायेंगे हम ।

ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जायेंगे हम।

इतवार की रात दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। राणा पिछले कई दिनों से लखनऊ के पीजीआई में भर्ती थे। मुनव्वर राणा की अचानक मौत से उनके चाहने वालों में गम लहर दौड़ गई है।

मुनव्वर राणा 26 नवंबर 1952 को रायबरेली उत्तर प्रदेश में पैदा हुए थे। लेकिन उनका ज्यादातर जिंदगी कलकाता में गुजरी।. मुनव्वर राणा के उस्ताद का नाम अब्बास अली खान बेखुद था। अपनी शायरी में फारसी और अरबी से परहेज करने वाले मुनव्वर राणा नोजवानो में भी में भी खूब पसंद किए जाते थे।

मां को लेकर मुनव्वर राणा ने जो शायरी की है। वोह कोई दूसरा शायर नही कर सका।

उनका एक शैर जो हर इंसान की जुबान पर रहता है।

" किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आयी।

मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आयी।"

अपनी शायरी के जरिए मुनव्वर राणा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे भी उठाते रहे हैं। मुशायरों के दौरान उन्होंने कई बार देश की राजनीति पर तीखे तंज भी कसे। 2012 में उन्हें उर्दू साहित्य में उनकी सेवाओं के लिए शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान से सम्मानित किया गया था। 2014 में भारत सरकार ने उन्हें उर्दू के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया था। लेकिन मुनव्वर राणा ने असहिष्णुता का आरोप लगाते हुए 2015 में साहित्य अकादमी सम्मान लौटा दिया था।


 
 
 

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